Monday 25 September 2017

आम का मै एक पेड़ हूँ...

एक औरत ...एक फलों के लदे हुए पेड़ की तरह होती है। पेड़ की मजबूत जड़ की तरह, पूरे परिवार को बाँधे रख़ती है... अपनी तकलीफों को नजरअंदाज़ कर परिवार के लिए करती, जिन बच्चों को सींच कर बड़ा करती, बड़े होकर वही उसे भूल जाते, क्या एक औरत प्यार और सम्मान की हकदार नहीं...अगर औरत नहीं तो ये संसार नहीं..कहीं ना कहीं हम सभी ने ऐसा महसूस किया होगा..मैंने उन भावों को शब्दों में डालने की कोशिश की है
आम का मै एक पेड़ हूँ...
बड़ा...हरा..आम से लदा...
टेहनी झुकी हुई है मेरी...
फिर भी हूँ सीधा ख़ड़ा....
जो तुम आए मेरे पास...
लेने कुछ ठंडी साँस....
जब सूरज ने तुमको तोड़ा....
दुनिया ने अकेला छोड़ा....
सहारा तो मै तेरा बना...
लेकिन क्या तुमने मुझको बख्शा??
आम तो सारे तोड़ डाले!!!
टेहनी का हवन कर डाला...
जो मै थोड़ा शान से था ख़ड़ा....
वो भी तुमने झुका दिया!!!
और ऐसा ही किया उसके साथ..
उसकी ही छाँव ली तुमने...
उसके ही प्यार से पले-बढ़े....
और समय जब आया साथ निभाने का...
कायर की तरह भाग गए??
देख पलट कर एक वार तू...
मुझ जैसी ही वो दिखेगी..
जिसको हर पल तुमने नोचा....
"कमजोर बहुत है" यह सोचा....
लेकिन हिम्मत के साथ खड़ी मिलेगी....
आँधी की तेज हवा हो...
या हो बारिश बेशुमार...
गरमी का हो मौसम...
या हो ठंड की मार...
अपनी नींव सम्भाले हुए...
रहता मैं हमेशा खड़ा!!
वो भी तो ऐसी ही है...
डट कर हमेशा रहती खड़ी...
जीवन के धूप छाँव में....
लड़ती ही जाती खुद अकेली....
लेकिन मैं तो एक पेड़ हूँ....
आँसू भी बहा न सकूँ...
उसकी सिसकी लेकिन सुन जरा...
इतना रूला ना उसको...
आँसू भी तो पोंछ जरा!!!
वही लेकर आई तुझे दुनिया मे...
साँसें भी उसने दी....
नाम एक...पर रूप अनेक...
और हर रूप में देती  मिठास ढेर!!!!!!!
एक औरत है वो..पेड़ नही...

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